झारखंड का धनबाद और बोकारो सबसे ज्यादा प्रदूषित-राहा

वायु प्रदूषण पर स्विच ऑन फाउंडेशन द्वारा मीडिया कार्यशाला का आयोजन

एस. पी. सक्सेना/रांची (झारखंड)। स्विच ऑन फाउंडेशन द्वारा एपिक इंडिया के सहयोग से बीते 14 जुलाई को झारखंड की राजधानी रांची में मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में विभिन्न प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक तथा सोशल मीडिया से जुड़े 2 दर्जन से अधिक पत्रकारों ने भाग लिया। जिसमें प्रदूषण मुक्ति एवं आम जनों को वायु गुणवत्ता के संबंध में बताया गया।

रांची स्थित प्रेस क्लब सभागार में वायु प्रदूषण जल वायु प्रदूषण विषय पर आयोजित कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे स्विच ऑन फाउंडेशन के प्रबंध निदेशक विनय जाजू ने कहा कि आज के समय में पूरे विश्व स्तर पर वायु प्रदूषण तथा जलवायु परिवर्तन एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है। इसके समाधान को लेकर सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर लगातार प्रयास किया जा रहा है।

जिसमें अब तक की गई रिसर्च के अनुसार स्वयंसेवी संस्थानों के अलावा मीडिया कर्मियों की भूमिका अहम रही है। जिन्होंने समय-समय पर प्रदूषण के मानकों का आकलन कर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराती रही है। बावजूद इसके खासकर झारखंड में प्रदूषण का स्तर कम होने के बजाय बढ़ता जा रहा है। उन्होंने बताया कि स्विच ऑन फाउंडेशन के द्वारा बीते 15 वर्षों से झारखंड के 8 जिलों में कार्य किया जा रहा है, जिसमें रांची, जमशेदपुर, हजारीबाग, धनबाद, बोकारो, देवघर, दुमका और गिरिडीह शामिल है।

जाजू के अनुसार लैंसेट जर्नल के एक रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण तथा जलवायु परिवर्तन के कारण प्रति एक लाख की आबादी में 10.2 लोगों का मौत हो रहा है। उन्होंने इसकी जांच तथा इसकी रोकथाम के लिए मीडिया कर्मियों से सहयोग की अपील की।

कार्यशाला में एपिक इंडिया के क्षेत्रीय निदेशक एवं अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय में कार्यरत आशीर्वाद राहा ने कहा कि सर्वेक्षण में पाया गया है कि झारखंड का धनबाद और बोकारो सबसे अधिक प्रदूषित जिला है। जहां रह रहे रहिवासियों की आयु झारखंड के गढ़वा जिला की तुलना में 5 से 7 वर्ष कम है। इसका मुख्य कारण इन जिलों में प्रदूषण का मानक स्तर (ए क्यू लेबल) पीएम 2.5 से कई गुना अधिक है, जबकि झारखंड का गढ़वा जिला सबसे कम प्रदूषित है। बावजूद इसके यहां भी प्रदूषण का स्तर पीएम 2.5 से अधिक है।

राहा ने बताया कि प्रदूषण नियंत्रण को लेकर खासकर मीडिया कर्मियों की भूमिका महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि शिकागो विश्वविद्यालय के एक रिसर्च के अनुसार वर्ष 1998 से 2020 तक भारत में प्रदूषण का स्तर दस गुणा बढ़ा है। यह काफी चिंता की बात है। इसके लिए कई स्तर पर सरकारी तथा गैर सरकारी स्तर से काम करना होगा। साथ ही आमजनों में जागरूकता के लिए जगह जगह लगातार ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से जागरूक करना होगा। राहा के अनुसार इसकी रोकथाम के लिए हमें समयबद्ध कार्य करने की जरूरत है।

राज अस्पताल रांची के वरीय प्यूमोनोलॉजिस्ट डॉक्टर सुप्रोवा चक्रवर्ती ने कहा कि वायु प्रदूषण अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), हृदय रोग और कैंसर जैसी गंभीर और पुरानी बीमारियों के व्यापक स्पेक्ट्रम से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि एक्यूआई स्तर की लगातार बढ़ती प्रवृत्ति बच्चों और वृद्ध जैसे कमजोर समुदायों के लिए बड़ा खतरा है। उन्होंने घरों के भीतर प्रदूषण फैलने के कारणों, उनसे निपटने तथा उसे कम करने पर प्रकाश डाला।

डॉ चक्रवर्ती ने कहा कि वायु प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन के कारण ही समाज में विभिन्न प्रकार की बीमारियों का फैलाव देखा जा रहा है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि कोरोना ने संपूर्ण विश्व को झकझोर कर रख दिया था। अब भी प्रतिवर्ष कोरोना के नए-नए वैरीअंट के मामले सामने आ रहे हैं। यह सब वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का नतीजा है। उन्होंने उपस्थित मीडिया कर्मियों को आगाह करते हुए कहा कि अब भी हम नहीं चेते तो आने वाले समय में इसके भयंकर परिणाम होंगे।

कार्यशाला में उपस्थित कई मीडिया कर्मियों द्वारा महिलाओं में गर्भ धारण की बिगड़ती स्थिति तथा फल एवं सब्जियों में बढ़ते बैक्टीरिया प्रभाव से संबंधित सवालों का जवाब देते हुए उपरोक्त वक्ताओं द्वारा जेनेटिक (जैविक) खेती पर जोर दिया गया। कार्यशाला का संचालन गार्गी मैत्री एवं विवेक गुप्ता ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन स्विच ऑन फाउंडेशन के जीएम अमर कुमार ने किया। कार्यशाला के सफल संचालन में फाउंडेशन के एसपीएम विवेक गुप्ता, उमेश कुमार वर्मा, टीम समन्वयक (को-ऑर्डिनेटर) महेंद्र विश्वकर्मा आदि का सहयोग सराहनीय रहा।

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