झारखंड के आदिवासी और मूलवासियों के लिए चिंता जगी है तो स्वागत-पांडेय

एन. के. सिंह/फुसरो (बोकारो)। स्थानीयता का मापदंड 1932 का खतियान हो 1964 या 1970 का सर्वे सबका स्वागत है। उक्त बातें भाजपा फुसरो नगर मंडल अध्यक्ष रामकिंकर पांडेय ने 19 सितंबर को कही। उन्होंने कहा कि उन नागरिकों के बच्चों के भविष्य की भी चिंता हो जो अपना जन्म स्थान छोड़कर झारखंड के उत्थान में अपना जीवन खपा दिए।

भाजपा फुसरो मंडल अध्यक्ष पांडेय ने कहा कि दशकों से पीढ़ी दर पीढ़ी झारखंड के औद्योगिक विकास, विस्तार और अर्थव्यवस्था में जिन्होंने खून पसीने लगा दिए, उन्हे प्रवासी मजदूर कहकर अपमानित करने वाले की बुद्धि मानवीय तो नहीं हो सकती।

उन्होंने कहा कि झारखंड आंदोलन में उम्र खपाने वालों के सपनों का झारखंड बने। झारखंड के स्थायी लोगों के हक के लिए स्पष्ट कानून बने इसका वे स्वागत करते हैं। यदि चुनाव आयोग का डंडा सर पर पड़ने का डर नहीं होता तो क्या सोरेन परिवार कभी स्थानीय नीति 1932 लेकर गंभीर होता? शायद कभी नहीं।

पांडेय ने कहा कि देर से ही सही अपने परिवार के नाम पर हजारों करोड़ की संपति अर्जित करने के बाद यदि सोरेन परिवार को झारखंड के आदिवासी और मूलवासियों के लिए चिंता जगी है तो स्वागत है।
लेकिन सीएम हेमंत सोरेन से आग्रह होगा कि जिस अंदेशा को वे विधान सभा में जाहिर करके कह रहे थे कि 1932 सर्वे के आधार पर स्थानीयता को कोर्ट रद्द कर देगा, आदि।

तो राज्यपाल के पास आए लिफाफे के बाद ऐसी कौन सी संवैधानिक सुविधा उनके हाथ लग गई। जरा यह भी जनता को भी बता दें, ताकि पेट्रोल सब्सिडी और बेरोजगारी भत्ता की तरह ये भी हवा हवाई साबित न हो जाए और ठीकरा केंद्र के माथे पर फोड़ कर चुप्पी साध लें।

उन्होंने कहा कि खतियान आंदोलनकारी जयराम महतो की लोकप्रियता से एक मंत्री महोदय इतने भयभीत हो गए कि आनन फानन में कच्चा पक्का प्रस्ताव कैबिनेट से पास कराके हड़बड़ी में 1932 छापावाला चादर ओढ़ लिए। लेकिन उनकी नकली मुस्कुराहट भी उनके भीतर की असुरक्षा के भाव को छिपा नहीं सकी।

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