घासी समाज को अविलंब आदिवासी का दर्जा दे वर्ना होगा आंदोलन-विजय शंकर नायक

एस. पी. सक्सेना/रांची (झारखंड)। झारखंड में भोक्ता समाज के तर्ज़ पर घासी समाज को भी आदिवासी का दर्जा दे केंद्र और राज्य सरकार अन्यथा इसके खिलाफ आंदोलन होगा।

उपरोक्त बाते 8 सितंबर आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के केंद्रीय उपाध्यक्ष विजय शंकर नायक ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, केंद्रीय जनजाति मंत्री को ई मेल भेजकर कही।

उन्होंने उपरोक्त को प्रेषित पत्र के माध्यम से बताया कि झारखंड राज्य के घासी समाज वर्तमान में अनुसूचित जाति झारखंड के पुराने वासिंदो में से एक है। कहा कि घासी समाज पूर्व से ही जनजातीय समाज रहा है।

इसकी भी रूढ़ीगत अपनी परंपरा, संस्कार एवं संस्कृति रही है। उन्होंने पत्र में कहा है कि आज झारखंड में आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक तथा शैक्षणिक रूप से सबसे कमजोर एवं अंतिम पायदान पर बैठा इस समाज की गिनती आज हो रही है।

नायक ने कहा है कि इस संदर्भ में उपरोक्त सभी का स्मरण करना चाहूंगा की द सुपेरिंटेंडेंट ऑफ सेंसस ऑपरेशन्स, बंगाल (Apperndex VIII) जब हो रहा था तब H.C Streatfeild, Eso, डिप्टी कमिश्नर रांची ने एक अक्टूबर वर्ष 1901 में पत्र क्रमांक-265 स को द सुपेरिंटेंडेंट ऑफ सेंसस ऑपरेशन्स, आदि।

बंगाल के 25 मई वर्ष 1902 को पत्र क्रमांक-184टी के जवाब में जनजातिय समाज की एक सूची बनाकर भेजा था, जिसमें 43 जनजातिय समुदाय को चिन्हित किया गया था। जिसमें क्रमांक-16 नंबर पर घासी समुदाय को जनजातीय की सूची में चिन्हित किया गया था।

नायक ने प्रेषित पत्र में कहा है कि हिमाचल प्रदेश के शिमला में 2 मई वर्ष 1913 को भारत सरकार के गजट अधिसूचना गृह विभाग नंबर 18 द्वारा डबल्यु एस मॉरिस भारत सरकार के सचिव (गृह) के हस्ताक्षर से प्रकाशित किया जो अपने पत्र संख्या 550 में या अधिसूचित किया गया।

जबकि सामान्य से भिन्न वे जनजाति जो मुंडा, उरांव, संथाल, हो, भूमि, खड़िया, घासी के नाम से जाने जाते हैं। उनके अपने प्राथमिक उत्तराधिकार एवं विरासत के रुढ़ीगत प्रथा कायम है जो कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1865 के प्रावधानों से सर्वथा असंगत है। इन जनजातियों पर उक्त अधिनियम के प्रावधानों को लागू करना व्यर्थ है।

नायक ने कहा कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1865 के भाग 332 में दिए गए शक्तियों का प्रयोग करते हुए गवर्नर जनरल काउंसिल में उक्त सभी जनजातीय, जनजाति जो मुंडा, उरांव, संथाल, हो, भूमि, खड़िया, घासी के नाम से जाने जाते हैं व बिहार एवं उड़ीसा प्रांत के मध्य निवासित हैं को इस अधिनियम के प्रावधानों की कार्रवाई की भूतलक्षी प्रभाव के साथ बाहर रखने की छूट देने में संतुष्ट हैं।

नायक ने कहा कि आजादी के बाद वर्ष 1950 के अनुसूचित जाति/जनजाति के अधिसूचना में बिना कारण बताएं घासी जाति को जनजाति की सूची से निकालकर अनुसूचित जाति बना दिया गया, जो इस समाज वर्ग के साथ अन्याय है। इसलिए उनकी प्रार्थना है कि जिस तरह भोक्ता को पूर्व में अनुसूचित जाति वर्तमान में जनजाति का दर्जा दिया गया है।

उसी के तर्ज पर आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, शैक्षणिक रूप से अंतिम पायदान में बैठे झारखंड के सबसे कमजोर समाज घासी को झारखंड में पुनः अनुसूचित जनजाति की सूची में रखने की दिशा में अग्रतर कार्रवाई की जाए, अन्यथा यह समाज अपने ऊपर हुए इस महा अन्याय के खिलाफ तथा पुनः अनुसूचित जनजाति की सूची में आने के लिए संघर्ष के साथ-साथ आंदोलन करने को बाध्य होगा। इसका जिम्मेवार केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकार होगा।

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