गंगा-गंडक संगम सबलपुर में दो सौ साल प्राचीन है सबसे पुराना शिव मंदिर

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में सोनपुर प्रखंड के गंगा-गंडक संगम तीर्थ सबलपुर का सबसे पुराना शिव स्थान सबलपुर बभनटोली में स्थित है। इस मंदिर का इतिहास लगभग दो सौ साल पुराना है।

जानकारी के अनुसार इस मंदिर में पूजा-अर्चना करनेवालों की हमेशा भीड़ लगी रहती है। हर वक्त घंटे- घड़ियालों की ध्वनि के बीच ॐ नमः शिवाय एवं हर- हर महादेव की गूंज सुनाई पड़ती रहती है। यहां प्रसाद के रुप में आटा, घी, मेवा, शक्कर के मिश्रण से बनी पंजरी भी चढ़ाई जाती है।

इसे भक्तों के बीच प्रसाद के रुप में वितरण किया जाता है। विशेष अवसरों पर चावल, मेवा और मखाने से बनी खीर भी प्रसाद के रुप में बनती है। दूध की बर्फी और लड्डू भी यहां चढ़ाई जाती है। इस मंदिर में प्रतिदिन जलाभिषेक एवं दुग्धाभिषेक होता है।

ब्रह्मा की पहली सृष्टि जल की है प्रधानता

उक्त मंदिर के मुख्य अर्चक पंडित जयभुवन झा उर्फ फूल झा बताते हैं कि श्रावण माह में अन्य शिव मंदिरों की तरह यहां शिवलिंग पर भी जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक की परंपरा अनवरत जारी है। उन्होंने बताया कि श्रावण माह में जल ही जीवन है श्लोगन की सार्थकता इस तरह यहां समझ में आती है।

सम्पूर्ण वातावरण मानसून से परिपूर्ण रहता है। हवाएं भी जलीय बयार से पूरित रहती हैं। सृष्टिः स्रष्टुराद्या अर्थात ब्रह्मा की पहली सृष्टि जल ही है। जल वृष्टि अधिक होने से पृथ्वी के गर्भ में सुषुप्त बीजों के उद्भव एवं विकास का दौर शुरु हो जाता है। गर्मी का ताप शांत हो जाता है। हृदयहारी वायु बहने लगती है।

सभी चराचर जड़ चेतन जीव-जंतु हर्षित हो जाते हैं। प्रकृति का वातावरण सुरम्य हो जाता है। संपूर्ण जीव-जगत उल्लास से भर जाता है। ऊष्णता से संतप्त प्राणियों को शरण देने वाला श्रावण मास का शुभागमन परम आह्लाद देने वाला हो जाता है। धरती हरियाली से परिपूर्ण हो जाती है। इसीलिए हरा रंग बाबा भोलेनाथ को प्रिय है।

भक्तगण भांग और धतूरा भी चढ़ाते हैं। जिसका रंग भी गहरा हरा है। भक्तगण यहां धूप, तिल के तेल का दीप और अगरबत्ती भी जलाते हैं।
शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः, स्नान्यं जलं समर्पयामि। का जाप भी करते है। कोई-कोई भक्त ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय का जाप करता भी दिख जाता है। परंपरागत रूप से भगवान शिव का रुद्र अभिषेक दूध, दही, शहद, घी, चीनी, नारियल पानी, पवित्र राख, चंदन का पेस्ट, फलों के रस आदि से किया जाता है।

दुग्धाभिषेक का है वैज्ञानिक महत्त्व

दूध को सकारात्मक ऊर्जा के सबसे अच्छे संवाहकों में से एक माना जाता है। जब इसे शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है, तो ऊर्जा का प्रवाह लिंगम की ओर केंद्रित होने लगता है। भक्तगण उसकी निकटता के लिए उस प्रवाह का पात्र बन जाते है।

सबसे पहले भक्तगण विघ्नहर्ता श्रीगणेश की पूजा करते हैं। उसके बाद शिवलिंग पर तांबे, चांदी या सोने के लोटे से दुग्धाभिषेक करते हैं। इस तरह अभिषेक करने के बाद शिवलिंग पर बिल्व पत्र, धतूरा, आंकड़े के फूल आदि पवित्र वस्तुएं अर्पित करते हैं।

यहां श्रीलक्ष्मी और नारायण की मूर्ति भी है स्थापित

मंदिर में शिव लिंग के सामने नंदी विराजमान हैं। मंदिर के भीतर बजरंगबली, श्रीगणेश, लक्ष्मीजी एवं श्रीहरि विष्णु की भी मूर्ति स्थापित है। कहा जाता हैं कि जब से यहां रहिवासी बसे तब से शिव लिंग एवं मूर्ति स्थापित है। इस तरह यह दो सौ वर्ष पीछे चला जाता है। मंदिर का जीर्णोद्धार वर्ष 2012-13 में संत राजेश्वरानंद महाराज के मार्गदर्शन में पटना के नौबतपुर प्रखंड के तरेत पाली मठ के विद्वान आचार्यों द्वारा संपन्न किया गया था। कुछ नवीन देव मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा भी हुई थी।

बड़ा शिव मंदिर जीर्णोद्धार में थी इनकी भागीदारी

उक्त मंदिर के जीर्णोद्धार में स्थानीय रहिवासी मुकेश कुमार शर्मा, सुधीर शर्मा, उपेन्द्र शर्मा, दीपक शर्मा (तत्कालीन मुखिया), प्रमोद शर्मा, विनोद शर्मा, अलख नारायण शर्मा (तीनों शिक्षक), उमा सिंह, पिंटू शर्मा, नंद किशोर शर्मा, स्व. सत्येन्द्र शर्मा, राजू शर्मा की बढ़चढ़कर भागीदारी रही थी, जबकि सहयोग में सम्पूर्ण सबलपुर बभनटोली शामिल रहा। प्राण प्रतिष्ठा के दिन महाभण्डारा का भी आयोजन किया गया था।

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