मुलवासी के ऐतिहासिक नारो को भाजपा गुम करने का कर रही षड्यंत्र-विजय शंकर नायक

एस. पी. सक्सेना/रांची (झारखंड)। आदिवासी मूलवासी समाज के जल, जंगल, जमीन बचाने के ऐतिहासिक नारो को भाजपा रोटी, बेटी, माटी के नारे में गुम करने का षडयंत्र कर झारखंड के जल, जंगल, जमीन को लूटना चाहती है।

उपरोक्त बातें 5 अक्टूबर को आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के केंद्रीय उपाध्यक्ष सह पूर्व विधायक प्रत्याशी विजय शंकर नायक ने कही। वे भाजपा के रोटी, बेटी, माटी के चुनावी नारे पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे।
नायक ने कहा कि झारखंडी समाज के जल, जंगल, जमीन बचाओ के ऐतिहासिक नारो के जगह भाजपा अपना चुनावी नया नारा रोटी, बेटी और माटी चलाने की कोशिश में लगी है।

उन्होंने कहा कि देश के प्रधानमंत्री एवं भाजपा के स्टार चुनाव प्रचारक के रुप मे नरेंद्र मोदी ने झारखंड के हजारीबाग में रोटी, बेटी और माटी के चुनावी नारे के साथ झारखंड में विधानसभा चुनाव का शंखनाद किया है, जो आदिवासी मूलवासी समाज जो जल,जंगल, जमीन बचाने के लिए आन्दोलनरत नेताओं के लिए शुभ संकेत नही है।

नायक ने कहा कि इस नारे के पिछे एक षडयंत्रपूर्ण कूटनीति है, जिसके तहत जल, जंगल, जमीन के नारों को रोटी, बेटी और माटी के नारे में विलुप्त कर देने का षडयंत्र है। कहा कि इस नारे ने यह भी पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है कि झारखंड में संघर्ष दो विचारधाराओं के बीच है। एक जल, जंगल, जमीन बचाने वाले है तो दुसरी ओर इन सम्पदाओं को लुटने वाले है।

उन्होंने कहा कि जल, जंगल, जमीन आदिवासी- मूलवासी समाज का जीवन मरण का प्रश्न और उनके जीवन जीने का आधार भी है। उनकी स्पष्ट समझ है कि यदि यह बचा रहेगा तो उन्हें कभी भी किसी का मोहताज नहीं होना पड़ेगा। इसलिए सदियों से वे इसके लिए संघर्ष भी करते रहे हैं। इस क्रम में सिदो-कान्हू, चांद-भैरव, फुलो-झानो, तिलका मांझी, धरती आवा बिरसा मुंडा, बुदधु भगत और अन्य झारखंडी वीर शहीदों के नेतृत्व में चला आंदोलन इसी संघर्ष को रेखांकित करता है।

नायक ने कहा कि झारखंड अलग राज्य का आंदोलन भी जल, जंगल, जमीन और अपनी अस्मिता संस्कृति को बचाने का ही संघर्ष था। तपकारा, कोयलकारो, नेतरहाट में चल रहे फायरिंग रेंज के खिलाफ आंदोलन इसी बात को साबित करता है कि झारखंड का मूल संघर्ष जल, जंगल, जमीन को बचाने का संघर्ष रहा है। क्योंकि इसी जल, जंगल, जमीन की बदौलत आदिवासी मूलवासी समाज कभी दुर्भिक्षा का शिकार नहीं होता।

यदि यह बचा है और इस पर आदिवासियों मूलवासियों का अधिकार सुरक्षित है तो रोटी का संकट उसके लिए कभी नहीं होगा। उन्होंने भाजपा नेताओ पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वैसे भी, बेटियों की सुरक्षा भाजपा क्या करेंगी, जो बलात्कारियों को माला पहनाते हैं। वोट की टुच्ची राजनीति के लिए राम रहीम जैसे बलात्कारी को पेरोल पर जेल के बाहर भीतर करते रहते हैं।

भारतीय महिला पहलवानों को ब्रजभूषण जैसे दुराचारी से बचाने के बजाय उसे बचाने के लिए एड़ी चोटी एक कर देते हैं। कहा कि आदिवासी मूलवासी समाज में बेटियां बोझ नहीं मानी जाती। वैसे में संघ, भाजपा परिवार और उसकी राजनीतिक सत्ता बेटियों की सुरक्षा की बात करे, तो यह हास्यास्पद ही है। दरअसल, मोदी जी और उनकी पार्टी रोटी, बेटी और माटी के नारे से जल, जंगल, जमीन के नैरेटिव को ही हमेशा के लिए दफन कर देना चाहती है।

क्योंकि वे जानते है की जल, जंगल जमीन को बचाने का संघर्ष जब तक जारी रहेगा, तब तक वे इसे सौगात की तरह अपने कारपोरेट यारों अडाणी को हंसदेव जंगल जैसे दिये है, वे झारखंड मे सारंडा जंगल कैसे दे पायेंगे।
नायक ने कहा कि झारखंड में भाजपा की सारी मशक्कत झारखंड के जल, जंगल, जमीन को अपने कारपोरेट यारों अडाणी को कैसे दे इसी बात के लिए है। उन्होंने कहा कि मणिपुर के आदिवासी अपनी अस्मिता के लिए लड़ रहे हैं। लद्दाख के आदिवासी छठी अनुसूचि के लिए शांतिमय संघर्ष कर रहे हैं।

क्या झारखंड के आदिवासी पांचवी अनुसूचि को बचाने के लिए कटिबद्ध होंगे या रोटी, बेटी, माटी के फरेब से भरे नारे में जल, जंगल, जमीन को बचाने के लिए अनादि काल से चले आ रहे संघर्ष को भूल जायेंगे? उन्होंने झारखंड के सभी दलित, आदिवासी, मूलवासी समाज से अपील किया की अभी मौका है कि वोट की चोट से भाजपा को इसका जवाब दें और जल, जंगल, जमीन को बचाने के लिए अनादि काल से हमारे पूर्वजो के द्वारा किये जा रहे संघर्ष को गति दे।

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