शहादत दिवस : शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह

झारखंड के शहीदों की अपेक्षा करती सरकार

कुदरत की हसीन वादियों में बसा झारखंड, अपनी कई खूबियों के लिए पूरी दुनिया में जाना और पहचाना जाता है। आज का खास दिन 8 जनवरी शहीद शेख भिखारी और शहीद टिकैत उमराव सिंह की शहादत को याद दिलाता है। देश की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले इन योद्धाओं को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया। अब इन वीर सपूतों की महज यादें ही रह गई हैं, जबकि केंद्रीय स्तर पर इन्हें भुलाया जा चुका है।

वनों का प्रदेश झारखंड, प्राकृतिक संपदाओं से लबालब है और खूबसूरत वादियों को अपने गोद में समेटे गंगा जमुनी तहजीब से बंधी जनता को अपने पूर्वजों और शहीदों की कारगुजारियों से प्रेरणा लेने को उकसाती है। इतना ही नहीं झारखंड प्रदेश अपनी सामूहिक विकास के लिए पुकार रही हैं। 1857 में झारखंड के वीर सपूतों ने भारत की आजादी में अग्रणी भूमिका निभाई। यहां के स्वतंत्रता सेनानियों में बिरसा मुंडा से लेकर सिद्धू- कान्हू, शाहदेव, महतो, मोमिन सभी ने अंग्रेजों से लोहा लिया। राष्ट्रीय स्तर पर कोई गांधी तो कोई भगत सिंह थे। हालांकि किसी के भी पकड़े जाने पर काला पानी की सजा होती थी, जलियांवाला में बहुत बड़ा हादसा हुआ था, सैकड़ों भारतीय अंग्रेजों की गोली से शहीद हुए या फांसी के फंदे पर झूला दिए गये।

भारत की स्वाधीनता सेनानियों की अब यादें ही बची है, यादें तो हैं लेकिन झारखंड के क्रांतिकारी धरती के लाल, वीर सपूत नहीं! अंग्रेजों के दांत खट्टा करने वाले स्वतंत्रता के महायोद्धा और ओजस्वी सेनापति शहीद शेख भिखारी और शहीद टिकैत उमराव सिंह को आज भी याद किया जाता है। जंग ए आजादी के शहीदों की दास्तांन मे झारखंड के इन वीर सपूतों की मिसाल अव्वल दर्जे की है, भारत की आजादी के लिए लाखों देशवासियों ने जान माल की आहुति दी है। 1857 ई. में गदर में शहीद होने वाले स्वतंत्रता के दीवानों को याद कर आंखें नम हो जाती है। एक भूली दास्तां को याद करने का दिन 8 जनवरी भी है, इस दिन शहीद शेख भिखारी और राजा टिकैत उमराव सिंह को अंग्रेजों ने फांसी के फंदे पर लटकाया था।

शहीद शेख भिखारी ओरमांझी (राँची जिला) के राजा टिकैत उमराव सिंह के दीवान एवं रणक्षेत्र के कुशल सेनापति थे, उन्होंने राजा के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ जंग ए आजादी में अग्रणी भूमिका अदा की। बहादुर सेनापति की तलवार में इतनी ताकत और कला थी की अंग्रेज कमिश्नर मैकडोनाल्ड ने उस जमाने के गजट में स्वतंत्रता संग्राम का खतरनाक बागी करार दिया था। शेख भिखारी (बुनकर) परिवार से थे, उनका जन्म बुढमू के मक्का होवटे में सन 1819 ई. में हुआ, लेकिन उन्होंने अपना पूरा जीवन ओरमांझी के खुदिया गाँव में बिताया, 6 जनवरी 1857 ई. को अंग्रेजों ने छल बल के साथ चुटूपाली घाटी के निकट भीषण लड़ाई के बाद राजा टिकैत उमराव सिंह के साथ शेख भिखारी को गिरफ्तार कर लिया।

गिरफ्तारी की खबर मिलते ही क्षेत्र के लोगों की भीड़ जामा होने लगी फलस्वरूप उसके दूसरे दिन यानी 7 जनवरी को अंग्रेजों ने अदालत लगाया और भयभीत अंग्रेजों ने अदालती कार्रवाई पूरी किये बिना ही दोनों को फांसी की सजा सुना दी। इतना ही नहीं आनंन फानंन में अंतिम इच्छा पूछे बिना ही राजा टिकैत उमराव सिंह के साथ शेख भिखारी को 8 जनवरी 1858 ई. को बरगद के पेड़ पर बेरहमी से फांसी के फंदे पंत्र्दे पर झूला दिया, वो खुशनसीब बरगद का पेड़ आज भी चुटूपालू घाटी की खूबसूरत वादियों में योद्धाओं की शहादत की गवाही दे रहा है।

इतिहास के पन्नों से गायब शहीदों का बलिदान

राजनीतिक भवंर में दम तोड़ती झारखंड के वीर सपूतों की दास्तांन इतिहास के पन्नों ने गायब है। इतिहासकार बताते हैं कि सरकार की बेरूखी के कारण इन वीर सपूतों की दास्ताँ इतिहास की परछाई भी ना बन पाई। अब सवाल उठने लगे हैं क्या इन शहीदों का बलिदान कोई मायने नहीं रखता, बच्चों और नई पीढ़ी के कानों से टकराकर लौटने वाली ये पंक्तियाँ : शहीदों की चिंताओं पर लगेंगे हर बरस मेले/ वतन पर मर-मिटने वालों का बाकी यही निशां होगा!

यदा कदा समाजिक संगठनों को छोड़कर सरकारी तौर पर इन शहीदों की याद में श्रद्धांजलि सभा या कार्यक्रम नहीं होना इनका अपमान और अफसोसनाक बात हैं, बहादुर शाह जफर ने सही कहा था, पै फातिया आए क्यूँ/ कोई चार फूल चढ़ाये क्यूँ/ कोई शमा आके जलायें क्यूँ/ मैं वो बेकसी का मजार हूँ। क्यों पढ़ें, कोई चार फूल क्यों चढ़ाएंगा, कोई दीया बाती क्यों करेगा? ये मजारे बेकसी और बेबस लोगों की है जफर की ये लाईनें आज भी दो वीर सपूतों की झारखंड में उपेक्षित होने का प्रमाण दे रही हैं। लगभग सवा तीन करोड़ की आबादी वाले झारखंड की जनसंख्या का 66 प्रतिशत से अधिक हिस्सा उन युवक और युवतियों का है, जो स्वंत्रता संग्राम की पीढ़ा और संघर्ष के उन जज़्बों से वाकिफ नही हैं,

इन शहीदों की दास्ताँ क्या है, इन्हें कौन बताएगा !
अफसोस इस बात का नही की सरकार बेरहम है !!
अफसोस इस बात का है की हमलोग खामोश क्यों हैं !!!

जो मुकाम व सम्मान शहीदों के परिवार को मिलना चाहिए वो नहीं मिला, झारखंडवासियों के लिए अफसोसनाक और पीढ़ादायक हैं।

–  नौशाद आलम अंसारी (रांची)।

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