श्रीगजेन्द्र मोक्ष देवस्थानम में मनाया गया गोवर्धन एवं अन्नकूट महोत्सव

श्रीगोवर्धन एवं गिरिराज भगवान की जय जयकार से गूंज उठा मंदिर परिसर

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में हरिहरक्षेत्र सोनपुर के श्रीगजेन्द्र मोक्ष देवस्थानम् नौलखा मन्दिर में 14 नवंबर को गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट महोत्सव का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर श्रीगजेन्द्र मोक्ष देवस्थानम दिव्य देश पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने भक्तों की उमड़ी भीड़ के बीच प्रवचन करते हुए कहा कि यह पर्व प्रत्येक वर्ष दिपावली के एक दिन बाद मनाया जाता है। परन्तु, इस वर्ष कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि दीपावली के दूसरे दिन दोपहर बाद तक रहा है।

इस कारण आज शाम श्रद्धा व विश्वास के साथ गोवर्धन पूजा मनाया गया। उन्होंने कहा कि गोवर्धन पूजा के दिन ही अन्नकूट पर्व भी मनाया जाता है। दोनों पर्व एक दिन ही मनाये जाते है। कहा कि दोनों पर्वो का अपना- अपना महत्व है।

स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने कहा कि गोवर्धन पूजा विशेष रुप से श्रीकृष्ण की जन्म भूमि भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े स्थलों में विशेष रुप से मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि यह पर्व मथुरा, काशी, गोकुल, वृन्दावन आदि में विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दिन घर घर के आंगन में गोवर्धन पर्वत की रचना की जाती है।

श्रीकृष्ण की जन्म स्थली बृज भूमि में गोवर्धन पर्व को मानवाकार रुप में मनाया जाता है। यहां गोवर्धन पर्वत उठाये भगवान श्रीकृष्ण के साथ साथ उनके गाय, बछड़ों, गोपियां, ग्वाले आदि भी बनाये जाते हैं। इन सबको मोर पंखों से सजाया जाता है। इस प्रकार गोवर्धन भगवान से प्रार्थना की जाती है कि पृथ्वी को धारण करने वाले हे भगवन आप गोकुल के रक्षक हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने आपको अपनी भुजाओं में उठाया था। आप मुझे भी धन-संपदा प्रदान करें।

गौ दिवस के रूप में भी मनाया जाता है यह दिवस

प्रवचन के क्रम में जगद्गुरु लक्ष्मणाचार्य ने कहा कि यह दिन गौ दिवस के रुप में भी मनाया जाता है। स्वामी जी ने कहा कि इस दिन गायों की सेवा करने से कल्याण होता है। गायों को प्रात: स्नान करा कर, उन्हें कुमकुम, अक्षत, फूल-मालाओं से सजाकर नये रस्सी परिधान से सुशोभित कर पूजन करना चाहिए।

मन्दिर में गोवर्धन पर्व पर विशेष रुप से गाय-बैलों को सजाने के बाद गाय के गोबर का पर्वत बनाकर इसकी पूजा की गई और सायंकाल में भगवान को छप्पन भोग का प्रसाद नैवेद्य चढ़ाया गया। स्वामी लक्ष्मणाचार्य महाराज ने गोवर्धन पूजा के विषय में एक कथा का वर्णन करते हुए कहा कि बात उस समय की है, जब भगवान श्रीकृष्ण अपनी गोपियों और ग्वालों के साथ गाय चराते थे।

गायों को चराते हुए श्रीकृष्ण जब गोवर्धन पर्वत पर पहुंचे तो गोपियां 56 प्रकार के भोजन बनाकर बड़े उत्साह से नाच-गा रही थी। पूछने पर मालूम हुआ कि यह सब देवराज इन्द्र की पूजा करने के लिये किया जा रहा है। देवराज इन्द्र प्रसन्न होने पर हमारे गांव में वर्षा करेगें। जिससे अन्न पैदा होगा। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने समझाया कि इससे अच्छा तो हमारे पर्वत है, जो हमारी गायों को भोजन देते हैं।

तब ब्रज के रहिवासियों ने श्रीकृष्ण की बात मानी और गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी प्रारम्भ कर दी। जब इन्द्र देव ने देखा कि सभी मेरी पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे है, तो उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। अहंकार वश इन्द्र गुस्से में मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर खूब बरसे, जिससे वहां का जीवन अस्त-व्यस्त हो जायें।

इन्द्र का आदेश पाकर मेघ ब्रजभूमि में मूसलाधार बारिश करने लगे। ऐसी बारिश देख सभी भयभीत हो गये और श्रीकृष्ण की शरण में पहुंचे। भगवान कृष्ण ने सभी को गोवर्धन पर्वत की शरण में चलने को कहा।जब सब गोवर्धन पर्वत के निकट पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्का अंगूली पर उठा लिया। सभी ब्रजवासी भाग कर गोवर्धन पर्वत की नीचे चले गयें। ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं गिरा।

यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव का अहंकार टूटा और उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। वे श्रीकृष्ण से क्षमा मांगने लगे। तब सात दिन बाद श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा। उन्होंने ब्रजवासियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पर्व मनाने को कहा। तभी से यह पर्व इस दिन से मनाया जाता है। इस दिन 56 प्रकार का भोजन तैयार किया जाता है, जिसे 56 भोग की संज्ञा दी जाती है।

उन्होंने कहा कि यह पर्व विशेष रुप से प्रकृति को उसकी कृपा के लिये धन्यवाद करने का दिन है। स्वामी जी ने कहा कि इस पर्व का आयोजन व दर्शन करने मात्र से व्यक्ति को अन्न की कमी नहीं होती है। उस पर अन्नपूर्णा की कृपा सदैव बनी रहती है। स्वामी जी ने सस्नेह श्रद्धालुओं को बताया कि अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का दिन है। इसमें पूरे परिवार, वंश व समाज द्वारा एक जगह बनाई गई रसोई को भगवान को अर्पन करने के बाद प्रसाद स्वरुप ग्रहण किया जाता हैं।

इस अवसर पर मन्दिर प्रांगण मे फूल देवी झा, सोनी कुमारी, निलिमा कुमारी, संजू देवी, हीरा कुमारी, कुसुम देवी, कांति देवी, ज्योति देवी, रेशमी देवी आदि ने ढोलक, झाल, हारमुनियम के साथ भजन कीर्तन गाकर श्रद्धालुओं को भक्ति की गंगोत्री में स्नान कराया। नवलखा मन्दिर प्रांगण में भक्ति की सरिता प्रवाहित हुई, जिसमें उपस्थित श्रद्धालुओं ने जमकर डुबकी लगाई।

मौके पर मन्दिर प्रबंधक नंद कुमार राय, मीडिया प्रभारी लालबाबु पटेल, दिलीप झा, अधिवक्ता एवं पत्रकार विश्वनाथ सिंह, पत्रकार संजीत कुमार,अधिवक्ता अभय कुमार सिंह, राजेश तिवारी, धनंजय सिंह सहित बड़ी संख्या में नर नारी उपस्थित थे।

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