शहीद कॉमरेड कैलाश महतो का 45वां शहादत दिवस आज

एस. पी. सक्सेना/बोकारो। बोकारो जिला के हद में नावाडीह प्रखंड के नारायणपुर ग्राम में कैलाश स्मारक उच्च विद्यालय, हरलाडीह नारायणपुर के प्रांगण मे शहीद कॉमरेड कैलाश महतो का 45वां शहादत दिवस 20 दिसंबर को आयोजित किया गया है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एवं शहीद दिवस आयोजक कमिटी की ओर से शहीद कॉ महतो का शहादत दिवस मनाया जायेगा उक्त जानकारी भाकपा बोकारो जिला प्रभारी कॉ गणेश प्रसाद महतो ने 19 दिसंबर कॉ दी।

उन्होंने बताया कि इस अवसर पर सर्वप्रथम पार्टी का झंडोत्तोलन होगा, जो झारखंड राज्य परिषद के राज्य सचिव कॉ महेन्द्र पाठक एवं हजारीबग के पूर्व सांसद कॉ भुनेश्वर प्रसाद मेहता संयुक्त रूप से करेंगे। ततपश्चात् उनके प्रतिमा पर माल्यार्पण का कार्यक्रम की शुरुआत होगी।

यहां सभी शहीद साथियों सहित बिनोद बिहारी महतो, शेरे शिवा महतो, दो दिन पूर्व कम्युनिस्ट पार्टी सदस्य कॉ जगरनाथ ठाकुर, कॉ रामचंद्र सिंह (मजदूर नेता), अवधेश शर्मा, शहीद रामलाल महतो, शहीद मंजूर हसन खाँ, शहीद जीबलाल महतो, शहीद विश्वनाथ महतो, आदि।

कॉ शफीक खाँ, कॉ हरिपद भारती, कॉ संतन रजक, कॉ सूरजपत सिंह, कॉ महेन्द्र सिंह, कॉ बिनोद मिश्र जैसे अनेकों दिवगंत नेताओं सहित देश के शरहदों मे जान गवाने वाले वीर सपूतो को श्रद्धांजलि देते हुए दो मिनट का मौन धारण किया जायेगा।

कॉ गणेश के अनुसार शहीद कॉ कैलाश महतो एक सच्चे कम्युनिस्ट थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन कम्युनिज्म के लिए, पिछड़े, शोषित -पीड़ित व दलित, आदिवासियों के हक अधिकार के लिए एक लम्बी लड़ाई लडी।

इन्होंने मजदूरों, किसानों को संगठित कर, पार्टी को मजबूत करने और महाजनी जुल्म, जमींदारी, ज़मीन लूट, रंगदारी, आतंक, सुदखोरी, पुलिसिया जुल्म, इत्यादि अनेकों शोषण के खिलाफ जनसंघर्षो को तेज किया।

कॉ महतो ने कहा कि आज जिस तरह पुरे देश में फासीवादी ताकते सर उठा रही है। लोकतंत्र पर हमले हो रहे हैं। आज संविधान खतरे में है। उस वक़्त भी था ज़ब कॉ कैलाश महतो आंदोलन कर रहे थे। आज भी वहीं स्थिति है।

कहा कि कॉ कैलाश महतो एक ऐसे भारत और ऐसे झारखंड राज्य का सपना देखा था जिसमें धर्म व राजनीति का कहीं और किसी तरह का घालमेल न हो। किसी तरह के दंगे फ़साद नहीं हो। साम्प्रदायिक माहौल ख़राब नहीं हो। हिन्दू मुस्लिम एकता में कहीं खटास न हो।

कॉ महतो ने बताया कि सन 1966-67 के दौर में किसानों-मजदूरों पर जुल्म का दौर चल रहा था। महाजनी जुल्म, वन विभाग व पुलिसिया दमन था। ज़मीन की भारी लूट थी। जमींदारों का काफी आतंक था।

उस समय कॉ चतुरानन मिश्र (भारत सरकार के पूर्व क़ृषि मंत्री), इंद्र दीप सिंह आदि अनेकों कम्युनिष्ट नेताओं का आह्वान जमीन लूट, महाजनी शोषण, भूमि मुक्ति आंदोलन के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए किया गया था। उस वक़्त कॉ कैलाश अपनी पढ़ाई छोड़ लड़ाई लड़ने के लिए निकल पड़े थे। बेरमो कोयलांचल में एक तरफ कॉ शफीक खाँ मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ रहे थे।

तब कॉ कैलाश महतो पुरे हजारीबाग जिले के तमाम किसानो के लिए लड़ रहे थे। ज़ब भी जरूरत पड़ी ये दोनों नेता संयुक्त रूप से शहरी क्षेत्रों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में अनेकों लड़ाईया लड़ी। उस वक़्त की तुलना में आज परिस्थिति और भी विकृत हो गई है। आज की जरूरत है क़ि हम सबों को कॉ कैलाश महतो के रास्ते पर मजबूती से चलने की।

इस शहीद दिवस में विचार करेंगे क़ि जिन जीवन मूल्यों के लिए, हिन्दू मुस्लिम एकता, समाज व देश के हित में, शोषण जुल्म के खिलाफ कैसे लड़ेंगे? आज के मौजूदा हालात में जहां सार्वजनिक क्षेत्रों की जमीनें व परिसम्पति को बेचने की तैयारी की गई है, संविधान पर हमले किये जा रहे है, किसानों की जमीन लूटी जा रही है।

मजदूरों के हक अधिकार छीन लिया जा रहा है। महिलाओ की असुरक्षा बढ़ गई है। रोजी रोटी छीनी जा रही है। बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। शिक्षा महंगी और पहुँच से बाहर हो रही है। दंगे फसाद बढ़ रहे हैं। रिक्त खाली पदों में भर्ती बंद है।

कॉ महतो के अनुसार सरकार की गलत आर्थिक -औद्योगिक नीतियों ने नागरिकों की स्थिति बहुत ही कमजोर और गंभीर बना दी है। इसे गंभीरता से लेना इस शहादत दिवस की मांग है। ऐसे ही अनेकों सवालों को लेकर कॉ कैलाश महतो की लड़ाई थी, जिस लड़ाई में महाजनी जुल्म, ज़मीन लूट, भ्रष्टाचारी, जमींदारी प्रवृत्ति से मदांध, एक संगठित गिरोह के प्रभाव में आकर सन 1976 में 20 दिसंबर को जमींदारों ने साजिश के तहत कॉ कैलाश को शहीद कर दिया था।

कॉ गणेश ने बताया कि आंदोलन के लिए क्रांतिकारियों की जमात खड़ी करने के चलते, ऐसे लोगों के आंदोलन के चलते पुलिस प्रशासन भी खिलाफ थी। जो स्वाभाविक था। यह इनकी साहसी और संघर्षशीलता की पहचान थी। इनकी एक बात हमेशा लोग याद करते है कि इतिहास के बड़े सवाल सड़कों पर जन संघर्षो से ही हल होते हैं।

सिर्फ ये ही नहीं, इनके नेतृत्व में ज़मीन मुक्ति आंदोलन तो चला ही, इसके अलावे सामाजिक लड़ाईयाँ भी लड़ी। जिनमे बाल विवाह, अंध विश्वास, भूत -डाइन, तिलक -दहेज़, नशाबन्दी शामिल है।

कॉ कैलाश महतो के विचार, सिद्धांत, जो कम्युनिज्म के अनुकूल रहे, बताया मार्ग उतना ही गंभीर, सार्थक, और प्रासंगिक है। लोग गर्व से आवाज़ लगाते हैं शहीद कामरेड कैलाश महतो अमर रहे।

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