यूँ अहिल्या चाहती तो इंद्र बच पाता नहीं, पर भद्रजन की बात थी तो मौन रहना ही उचित था’

प्रहरी संवाददाता/मुंबई। ‘यूँ अहिल्या चाहती तो इंद्र बच पाता नहीं। पर भद्रजन की बात थी तो मौन रहना ही उचित था।।’ ये शेर है कवि नवीन चतुर्वेदी ने अपने हिंदी ग़ज़ल संग्रह ‘धानी चुनर’ का जिसमें उन्होंने अपनी 87 ग़ज़लों को शामिल किया है।

इस ग़ज़ल संग्रह में भारत और हिंदी से जुड़े शब्दों, संस्कारों और पौराणिक कथाओं को शेर के रूप में बुना गया है। एक ग़ज़ल में नवीन ने एक असाधारण शेर ‘नर से नारायण वही बन पाता है जिसको पश्चाताप समझ आने लगते हैं।’ रचा है।

‘धानी चुनर’ पर अपने समीक्षात्मक वक्तव्य में वरिष्ठ शायर देवमणि पांडेय ने कहा कि देश दुनिया में फ़िराक़ गोरखपुरी के नाम से जाने जाने वाले कालजयी शायर रघुपति सहाय ‘फ़िराक़’ ने एक बातचीत में कहा था कि हिंदुस्तान में ग़ज़ल को आए हुए अरसा हो गया, लेकिन यहां की ग़ज़ल मे अब तक यहां की नदियां, पर्वत, लोक जीवन, आदि।

राम और कृष्ण क्यों शामिल नहीं हैं? लेकिन नवीन ने हमारी सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ हमारे पौराणिक चरित्र राम सीता, कृष्ण राधा, शिव पार्वती आदि अपने मूल स्वभाव के साथ शामिल हैं।

वरिष्ठ शायर डॉ सागर त्रिपाठी ने नवीन की ग़ज़लों की समीक्षा करते हुए कहा कि नवीन की ग़ज़लें कृष्ण की बांसुरी की तरह हैं। उन्हें जितनी बार सुनो उतनी ही ज़्यादा अच्छी लगती हैं। नवीन चतुर्वेदी के यहां हिंदी की ख़ूबसूरत शब्दावली है। धर्म, अध्यात्म और नैतिक मूल्य हैं। उन्होंने इन्हीं से अपनी ग़ज़लों को समृद्ध करने का सराहनीय कार्य किया है।

रविवार 16 अक्टूबर 2022 को केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट, गोरेगांव में आयोजित चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई की सप्ताहिक बैठक की अध्यक्षता प्रतिष्ठित शायर डॉ सागर त्रिपाठी (Dr Sagar Tripathi) ने की। दूसरे सत्र में आयोजित काव्य संध्या में डॉ त्रिपाठी, डॉ बनमाली चतुर्वेदी, आदि।

उदयभानु सिंह, अर्चना जौहरी, अलका शरर, नवीन नवा, नवीन चतुर्वेदी, आकाश ठाकुर और जबलपुर से पधारे कवि सतीश जैन नवल ने कविता पाठ किया। कवियों की टीम में गुजराती से राजेश हिंगू और मराठी से चंद्रशेखर सानेकर भी शामिल थे।

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