कालिदास रंगालय में सिदो कान्हू नाटक का मंचन

एस. पी. सक्सेना/पटना (बिहार)। बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान के समीप स्थित कालिदास रंगालय में 7 जुलाई की संध्या सिदो कान्हू नाटक का सफल मंचन किया गया। उक्त जानकारी लोक पंच के सचिव मनीष महीवाल ने दी।

उन्होंने बताया कि संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली द्वारा वित्तीय सहयोग तथा इमेज आर्ट सोसाइटी पटना (Image Art Society Patna) के सहयोग से रंग रूप वैशाली के कलाकारों द्वारा उक्त नाटक प्रस्तुत किया गया। जिसमें लगभग पांच सौ दर्शक उपस्थित होकर नाटक आनंद लिया।

महिवाल ने बताया कि उक्त नाटक संध्या सात बजे से नौ बजे तक आयोजित किया गया था। उन्होंने बताया कि झारखंड के वीर सपूत सीदो कान्हू जिसने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद कर अपना बलिदान दिया। उक्त नाटक में इस घटना का कलाकारों द्वारा सजीव चित्रण प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया।

महिवाल के अनुसार उक्त नाटक का सार इस प्रकार है कि कार्ल मार्क्स ने जिसे भारत की प्रथम जनक्रांति कहा था, वह था सन 1855-56 का संथाल विद्रोह या हूल। इसके नायक दो भाई थे- सिदो मुर्मू और कान्हू मुर्मू। इनका जन्म झारखंड राज्य (Jharkhand State) के संथाल परगना क्षेत्र के भोगनडीह गाँव में हुआ था।

इन दोनों ने ब्रिटिश सत्ता, उनके कर्मचारियों, पुलिस, महाजन एवं ज़मींदारों के ख़िलाफ़ हूल किया, जिसका नारा था- करो या मरो, अंग्रेज़ो हमारी माटी छोड़ो। इनके आह्वान पर 30 जून 1855 को भोगनडीह में 400 गाँवों के संथाल आदिवासियों ने एक सभा की तथा सिदो को राजा और कान्हू को मंत्री चुनकर विद्रोह का शंख फूँका गया।

संथाल अपने तीर- धनुष और कुल्हाड़े लेकर लड़ने को चल दिए। आरंभ में उन्हें जीत मिली। ज़मींदार- महाजन और गोरे उनके डर से भाग गए, परंतु अंग्रेज़ो के पास सेना की कमी नहीं थी। उनके पास आधुनिक तोप और बंदूकें थी। अंततः संथालों की हार हुई। सिदो-कान्हू और उनके भाई- बहन वीरगति को प्राप्त हुए।

झारखंड के संथाल आज भी उन शहीदों को याद करते है, पर उस क्षेत्र के बाहर उनका नाम तक कोई नहीं जानता। यह नाटक उन्हीं गुमनाम क्रांतिकारियों से परिचित कराने का एक प्रयास मात्र है।

महीवाल के अनुसार प्रस्तुत नाटक में कलाकार कंचन झा जाहेरा एरा, राधिका कुमारी फूलो, सौम्या स्वराज झानो, सुप्रीति रॉय संथाली महिला जबकि कृष्णा कुमार सिदो, प्रवीण कुमार कान्हू, दीपक कुमार चाँद, विष्णु कुमार भैरव, सूरज कुमार पुत्र (बंसी), सुशांत चक्रवर्ती पिता, राज कुमार भगत ज़मींदार, अभिषेक आनंद महेश दारोगा, रोहित कुमार, पंकज प्रभात (उदघोषक) सिपाही, रौशन गुप्ता कलेक्टर, प्रिंस राज मारांग बुरु/अंग्रेज़ की भूमिका में थे।

उन्होंने बताया कि प्रस्तुत नाटक के सूत्रधार ज़फ़्फ़र आलम जबकि मंच से परे प्रकाश परिकल्पना राजीव राय, मंच निर्माण सुनील शर्मा, वेशभूषा कंचन झा, रूप सज्जा जितेन्द्र कुमार जीतू, रंग वस्तु राज, दीपक, कृष्णा, नगाड़ा/पखावद मो. इमरान, सहायक निर्देशक अंज़ारूल हक़, लेखन, संगीत, परिकल्पना एवं निर्देशन अविजित चक्रवर्ती का नाटक की बेहतरीन प्रस्तुति में अहम योगदान रहा है।

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