नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन गुल्ली डंडा और भाई साहब की प्रस्तुति

एस.पी.सक्सेना/पटना(बिहार)। नाट्य संस्था लोक पंच द्वारा आयोजित “दशरथ मांझी नाट्य महोत्सव” के दूसरे दिन 16 फरवरी को रंगसृष्टि पटना (Rang shristi Patna) द्वारा मुंशी प्रेमचंद (Munshi premchand) की दो कहानी को एकत्रित कर “गुल्ली डंडा और भाई साहब” को सनत कुमार के निर्देशन में मंचित किया गया। उक्त जानकारी लोकपंच के सचिव मनीष महिवाल ने दी।
महिवाल ने बताया कि लेखक मुंशी प्रेमचंद ने इस पाठ में अपने बड़े भाई के बारे में बताया है जो की उम्र में उनसे पाँच साल बड़े थे परन्तु पढाई में केवल तीन कक्षा आगे। छोटे भाई की उम्र नौ साल थी और उनके भाई चौदह साल के थे। वे लेखक की पूरी निगरानी रखते थे जो की उनका जन्मसिद्ध अधिकार था। बड़े भाई स्वभाव से बड़े अध्यनशील थे। हमेशा किताब खोले बैठे रहते। समय काटने के लिए वो कॉपियों पर तथा किताब के हाशियों पर चित्र बनाया करते। एक चीज़ को बार-बार लिखते। दूसरी तरफ छोटे भाई का मन पढ़ाई में बिलकुल नहीं लगता। अवसर पाते ही वो हॉस्टल से निकलकर मैदान में खेलने आ जाते। खेलकूद कर जब वो वापस आते तो उन्हें बड़े भाई के रौद्र रूप के दर्शन होते। उनके बड़े भाई साहब छोटे को डाँटते हुए कहते कि पढ़ाई इतनी आसान नही है। इसके लिए रात-दिन आँख फोड़नी पड़ती है। खून जलाना पड़ता है, तब जाकर यह समझ में आती है। अगर तुम्हें इसी तरह खेलकर अपनी समय गँवानी है तो बेहतर है की घर चले जाओ और गुल्ली-डंडा खेलो। इस तरह यहाँ रहकर दादा की गाढ़ी कमाई के रूपए क्यों बरबाद करते हो? ऐसी लताड़ सुनकर छोटा रोने लगते और उन्हें लगता कि पढ़ाई का काम उनके बस का नहीं है परन्तु दो-तीन घंटे बाद निराशा हटती तो फटाफट पढाई-लिखाई की कठिन टाइम-टेबिल बना लेते। जिसका वो पालन नहीं कर सकते। खेल-कूद के मैदान उन्हें बाहर खिंच ही लाता। इतने फटकार के बाद भी वो खेल में शामिल होते रहें।
सालाना परीक्षा में बड़े भाई फिर फेल हो गए और छोटा भाई अपनी कक्षा में प्रथम आये। उन दोनों के बीच अब दो कक्षा की दूरी रह गयी। लेखक के मन में आया कि वह भाई साहब को आड़े हाथों लें परन्तु उन्हें दुःखी देखकर लेखक ने इस विचार को त्याग दिया और खेल-कूद में फिर व्यस्त हो गए।
एक दिन लेखक भोर का सारा समय खेल में बिताकर लौटे तब भाई साहब ने उन्हें जमकर डाँटा और कहा कि अगर कक्षा में अव्वल आने पर घमंड हो गया है तो यह जान लो कि बड़े-बड़े आदमी का भी घमंड नही टिक पाया। तुम्हारी क्या हस्ती है? अनेको उदाहरण देकर उन्होंने लेखक को चेताया। बड़े भाई ने कक्षा की अलजबरा, जामेट्री और इतिहास पर अपनी टिप्पणी की और बताया की यह सब विषय बड़े कठिन हैं। निबंध लेखन को उन्होंने समय की बर्बादी बताया और कहा की परीक्षा में उत्तीर्ण करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। स्कूल का समय निकट था नही तो लेखक को और बहुत कुछ सुनना पड़ता। उस दिन लेखक को भोजन निःस्वाद सा लगा। इतना सुनने के बाद भी लेखक की अरुचि पढाई में बनी रही और खेल-कूद में वो शामिल होते रहे।
एक दिन संध्या समय लेखक हॉस्टल से दूर कनकौआ लूटने के लिए दौड़े जा रहे थे तभी उनकी मुठभेड़ बड़े भाई से हो गयी। वे लेखक का हाथ पकड़ लिया और गुस्सा होकर बोले कि तुम आठवीं कक्षा में भी आकर ये काम कर रहे हो। एक ज़माने में आठवीं पास कर नायाब तहसीलदार हो जाते थे। कई लीडर और समाचार पत्रो के संपादक भी आठवीं पास हैं परन्तु तुम इसे महत्व नही देते हो। उन्होंने लेखक को तजुरबे के महत्व स्पष्ट करते हुए कहा कि भले ही तुम मेरे से कक्षा में कितने भी आगे निकल जाओ फिर भी मेरा तजुरबा तुमसे ज्यादा रहेगा और तुम्हें समझाने का अधिकार भी। उन्होंने लेखक को अम्माँ दादा का उदाहरण देते हुए कहा की भले ही हम बहुत पढ़-लिख जाएँ परन्तु उनके तजुरबे की बराबरी नही कर सकते। वे बिमारी से लेकर घर के काम-काज तक में हमारे से ज्यादा अनुभव रखते हैं। इन बातों को सुनकर लेखक उनके आगे नत-मस्तक हो गए और उन्हें अपनी लघुता का अनुभव हुआ। इतने में ही एक कनकौआ उनलोगों के ऊपर से गुजरा। चूँकि बड़े भाई लम्बे थे इसलिए उन्होंने पतंग की डोर पकड़ ली और होस्टल की तरफ दौड़ कर भागे। लेखक उनके पीछे-पीछे भागे जा रहे थे।
महिवाल ने बताया कि इस नाटक में भाई भाई के बीच प्रेम की भारतीय परंपरा दिखती है। साथ ही खेल कूद के महत्व को भी रेखांकित करती है। इस नाटक में नीतीश कुमार, सौरव कुमार ने अपने अभिनय से लोगों को प्रभावित किया है।

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