बिहार में भूमि सर्वे बना जी का जंजाल, हर जगह अफरा तफरी का माहौल

गंगोत्री प्रसाद सिंह/हाजीपुर (वैशाली)। वैशाली जिले में नए सर्वे कानून के अनुसार भूमि सर्वेक्षण का कार्य पंचायत स्तर पर शुरू हो गया है। आम सभा के माध्यम से सरकार द्वारा नियुक्त सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी और अमीन क्षेत्र के रहिवासियों को उनके भूमि संबंधी प्रपत्र भरने की जानकारी दे रहे हैं।

जानकारी के अनुसार प्रपत्र 2 भरने के समय रैयतो को खतियान की फोटो प्रति जमाबंदी या केवाला दस्तावेज की छाया प्रति संलग्न करना है। खतियान और केवाला दस्तावेज का नकल प्राप्ति के लिए रैयत वैशाली जिला मुख्यालय हाजीपुर का चक्कर लगा रहे हैं। हालात यह है कि पुराने केवाला दस्तावेज मुजफ्फरपुर अभिलेखागार में है, जहां से नकल प्राप्त करना आम गरीब जनता के लिए मुश्किल काम है।

हाजीपुर राजस्व अभिलेखागार में प्रतिलिपिकार के रूप में सिर्फ एक कर्मचारी है। जबकि नकल के लिए सैकड़ो आवेदन प्रतिदिन आ रहे हैं। जरूरतमंदो को दो महीना अथवा 3 महीना के बाद नकल मिलने की बात बताई जा रही है। ज्ञात हो कि, वैशाली जिले में करीब 12 लाख से अधिक जमाबंदी है।

लेकिन 75 प्रतिशत से अधिक जमाबंदी जो ऑनलाइन पोर्टल पर चढ़ाए गए हैं उसमें कई प्रकार की त्रुटि होना बताया जा रहा है, जिसको सही करवाने के लिए रैयत राजस्व कर्मचारी और अंचल कार्यालय का चक्कर लगा रहे हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार अभी तक पांच प्रतिशत रैयत भी अपना प्रपत्र दो भरकर अपने-अपने अंचल के सर्वे शिविर में नहीं जमा कर सके हैं। एक और परेशानी आम जनों को यह हो रही है कि पुराने दस्तावेज या तो कैथिलिपी में है या उर्दू फारसी में, जिसको पढ़ने वाले बहुत ही कम बचे हैं।

सरकार द्वारा भूमि सर्वेक्षण कार्य के लिए अभियंत्रण पास डिग्री और डिप्लोमा होल्डरों को बहाल किया गया है, जिन्हे स्थल पर भूमि सर्वेक्षण का कोई अनुभव नहीं है और न पुराने दस्तावेज पढ़ पा रहे हैं। जिस वजह से उक्त दस्तावेज का हिंदी में अनुवाद करने के लिए आम व् खास सभी भटक रहे हैं।

बताया जाता है कि जिले में बहुत से कैंथी लिपि और उर्दू फारसी के दस्तावेज को हिंदी में रूपांतरण करने वाले सामने आए हैं, जो सही से अनुवाद भी नहीं कर पा रहे हैं। इससे जरूरतमंदो को आर्थिक रूप से परेशानी झेलना पर रहा है।

बताया जाता है कि वैशाली जिले के महनार अनुमंडल व्यवहार न्यायालय में 14 सितंबर को आए न्यायार्थी और अधिवक्ताओं से सर्वे के दौरान होने वाली कठिनाइयों पर उनसे बातचीत करने पर अनुमंडल न्यायालय के अधिवक्ता शंभू राय ने बताया कि अमूमन 10 प्रतिशत रैयतों के बीच जमीन को लेकर कोर्ट में मुकदमा लंबित है। साथ ही राजस्व अभिलेख में जो रैयतों की जमीन का विवरण दर्ज किया गया है, उसमें बहुत सी त्रुटियां हैं।

उन्होंने कहा कि रहिवासियों को कागजात का नकल नहीं प्राप्त हो रहा है। सबसे बुरा हाल दादा, परदादा के जमीनों के बंटवारों को लेकर परिवारों के बीच है। परिवार के किसी एक सदस्य के पास सभी कागजात है तो वह दूसरे सदस्य को नहीं देना चाह रहा है। जिस वजह से हर गांव में हर परिवार में आपसी कलेश उत्पन्न हो रहा है। स्थिति आपसी मारपीट तक पहुंच जा रहा है।

उपस्थित अन्य अधिवक्ताओं ने दावा किया कि इस प्रक्रिया में रिश्वतखोरी भी बढ़ गई है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भूमि सर्वे का काम जल्दबाजी में उठाया गया कदम है। सरकार को चाहिए कि संबंधित कर्मचारियों के जरिए पहले राजस्व रिकॉर्ड, जैसे खतियान, वंशावली व राजस्व रसीद आदि को दुरुस्त करे।

अधिवक्ता गणेश प्रसाद कहते है कि यदि सर्वे का कार्य तत्काल प्रभाव से नहीं टाला गया तो जिस तरह से राज्य सरकार के कर्मियों की मिलीभगत से सर्वे के काम में गड़बड़ियां की जा रही है, आने वाले समय में अदालतों के समक्ष सिविल और आपराधिक मामलों का अंबार लग जाएगा।

रहिवासी बेवजह मुकदमेबाजी में फसेंगे। कहा कि बहुत से रहिवासी जो राज्य के बाहर रहते हैं, उनकी अनुपस्थिति में उनके पट्टीदार नाजायज तरीके से जमीन में हेराफेरी करवा सकते हैं और भविष्य में जमीन संबंधित मुद्दों पर विवाद और अधिक होगा। अब यह हाल पुरे बिहार का है। राज्य सरकार को सोंचना है कि करे तो कैसे करे।

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